Add To collaction

लेखनी कहानी -11-Apr-2022 इंटरनेट के बिना एक दिन

भाग २


 कैला मैया का मंदिर राजस्थान के करौली जिले में जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर है । मान्यता है कि यह मंदिर मां अंबे का ही है । वैसे तो जितने भी देवी के मंदिर हैं, वे सभी मां अंबे, गौरी, शारदे को प्रतिनिधित्व करते हैं । कैला मैया की बात विशेष है । दूर दूर से लोग आते हैं मां के दर्शन करने । "जात" देने । बहुत से लोग अपने अपने घरों से सैकड़ो किलोमीटर पैदल चलकर आते हैं दर्शनों के लिए । लाखों की संख्या में लोग आते हैं । चैत्र और अश्विन माह में जब देवी के नवरात्रा होते हैं, तब यहां पर लोग विशेषकर दर्शनों के लिए आते हैं । अप्रैल माह में भीड़ बहुत रहती है । लंबी लंबी कतारें लगी होती है दर्शनों के लिए मगर लोगों का उत्साह फिर भी कम नहीं होता है । 

कैला मैया से करीब तीन किलोमीटर दूर खोहरी गांव में माता बीजासनी का मंदिर है । हम लोग दौसा जिले के महवा गांव के रहने वाले हैं तो हमारे गांव , हिण्डौन और आसपास के क्षेत्र में बीजासनी माता की बहुत मान्यता है । जैसा कि मैंने पहले बताया था कि "जाये और ब्याहे" दोनों ही स्थितियों में बीजासनी माता की "जात" लगती है । जात देने वाले लोग पहले बीजासनी माता के मंदिर जाते हैं और वहां पर "पट्टा" भरते हैं । 

"पट्टा" भरना एक प्रकार से बीजासनी माता की आराधना करना है । इसमें एक लाल कपड़ा (सामान्यतः ब्लाउज पीस) , 43 पूरियां, सूजी का हलवा के लगभग 10 पीस, एक चूड़ा और मां के श्रंगार का सामान वगैरह होता है जो देवी मां पर चढ़ता है । फिर बीजासनी माता के दर्शन करते हैं । औरतें मां के दरबार में नृत्य कर अपनी खुशियां व्यक्त करती हैं । मां से अपने सुहाग की और परिवार की रक्षा करने की याचना करती हैं । धन धान्य मांगती हैं और आशीर्वाद प्राप्त करती हैं । 

फिर कैला मैया के दर्शन करती हैं । यहां यह बात विशेष उल्लेखनीय है कि "जात" देने वाले लोग पहले बीजासनी माता के यहां पर पट्टा भरते हैं, फिर दर्शन करते हैं । उसके बाद ही कैला मैया के दर्शन करते हैं । यह किवदंती है कि जो भी कोई व्यक्ति अगर पहले कैला मैया के दर्शन कर ले और फिर बीजासनी माता के दर्शन करने जाता है तो बीजासनी माता नाराज हो जाती हैं और फिर "अनिष्ट" होने की गुंजाइश बन जाती है । 

इस संबंध में कोई आख्यान तो मैने सुना नहीं है पर मानता हूं कि होगा अवश्य । मेरी छोटी सी बुद्धि में यह बात आती है कि कैला मैया शायद बड़ी बहन होंगी और बीजासनी माता छोटी । छोटी बहन का हृदय भी छोटा ही होता होगा जबकि बड़ी बहन का बड़ा । तभी तो कैला मैया बुरा नहीं मानती कि जातरी उनके दर्शन के लिए पहले आ रहे हैं या पीछे । मगर बीजासनी माता बुरा मान जाती हैं । यह हमारे लिये एक सबक है कि पहले छोटे दिल वालों का मान कीजिए फिर बड़े दिलवालों का । 

मुझे मेरे बचपन की कुछ बातें याद हैं । मैं संभवतः उस समय पहली कक्षा में पढ़ता था । एक दिन स्कूल से आया और चारपाई पर पड़ गया । मेरे पैरों में बहुत तेज दर्द हो रहा था । हो सकता है कि वह दर्द अतिरेक खेलने के कारण हो । उन दिनों तो हम सब बच्चे भागने, कूदने, फांदने के ही खेल खेलते थे । 

तो मेरी हालत देखकर मां बहुत चिंतित हुई । उन्होंने मेरे पैर भी दबाये मगर कोई फर्क नहीं पड़ा । पिताजी दुकान पर थे । उन्हें बुलवाया । उन्होंने अपने हिसाब से प्रयास किये मगर आराम नहीं मिला । मैं दर्द से कराह रहा था, बुरी तरह रो रहा था । तब मां ने "बीजासनी माता" का ध्यान किया और उस समय 5 रुपये मेरे ऊपर "उसार कर" एक जगह रख दिये और प्रार्थना की "हे बीजासनी माता । हमको तेरी जात देनी थी । मगर कुछ कारणों से विलंब हो गया है । हमारा अपराध क्षमा करो मां । अबकी बार हरिशंकर की जात दिलवा देंगे । इस पर रहम करो मां । इसे अच्छा कर दो" । 

पता नहीं कैसा चमत्कार था वह कि मेरे पैरों का दर्द अचानक बिल्कुल ठीक हो गया । मैं पांच छ: साल का था तब । इस चमत्कार को देखकर मां और बाबूजी ने बीजासनी माता को घर से ही बारंबार प्रणाम किया । नवरात्रों में मुझे लेकर जात दिलवाने गये फिर । 

उसके बाद मेरे विवाह के उपरांत मेरी मां मुझे और मेरी पत्नी सुनीता को लेकर जात दिलवाने गयीं । तब तक हम लोग बस द्वारा ही यात्रा करते थे । यह सन 1988 की बात है । 9 मार्च को शादी हुई थी और उसके तुरंत बाद नवरात्रों में हम लोग जात देने चले गये थे । तब आवागमन के बहुत ज्यादा साधन नहीं थे । महवा से कैला मैया तक जाने में तीन बसें लेनी पड़ी थीं । पहली महवा से हिंडौन तक । दूसरी हिंडौन से करौली तक और तीसरी करौली से कैला मैया तक । उन दिनों रोडवेज की बसें ऐसे चलती थीं कि जितनी सवारी अंदर होती थी उससे ज्यादा सवारी छत पर होती थी और लोग पीछे भी लटके रहते थे । मुझे भी छत पर ही जगह मिली थी । जैसे तैसे मां और सुनीता को अंदर बैठा पाया था । 

कैला मैया से बीजासनी माता तक जाने के लिए केवल ऊंटगाड़ी ही थी । चूंकि मैं ग्रामीण परिवेश का हूं इसलिए मैं तो बैलगाड़ी, ऊंटगाड़ी, जुगाड़ , ट्रैक्टर ट्रोली और न जाने किन किन साधनों में बैठ चुका हूं । मगर सुनीता ने पहली बार ऊंटगाड़ी से यात्रा की थी । उन्हें बड़ा अटपटा सा लगा । रोमांच भी हो रहा था मगर डर भी लग रहा था उन्हें । लेकिन वह यात्रा भी अविस्मरणीय यात्रा थी । अगले ही साल पुत्र हिमांशु को लेकर फिर से 'जात' दिलवाई गई । 

1989 के बाद 2019 में फिर से "जात" देने का अवसर आया जब हिमांशु का विवाह चारू के साथ हुआ और अब पौत्र शिवांश के आने पर एक बार फिर से यह सौभाग्य मिल रहा था । 

क्रमशः 

हरि शंकर गोयल "हरि" 
11.4.2022 

   8
7 Comments

Rohan Nanda

15-Apr-2022 01:03 AM

👍👍

Reply

Seema Priyadarshini sahay

13-Apr-2022 10:30 PM

बेहतरीन👌👌

Reply

Hari Shanker Goyal "Hari"

14-Apr-2022 10:51 AM

💐💐🙏🙏

Reply

Anam ansari

11-Apr-2022 07:26 PM

👏👏👏

Reply

Hari Shanker Goyal "Hari"

11-Apr-2022 11:06 PM

💐💐🙏🙏

Reply